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मंदिर परिचय

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श्री १००८ चंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर

मध्यप्रदेश के सागर जिले में स्थित मंडी बामोरा बड़े बाबा भगवान आदिनाथ की नगरी है, संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के शब्दों में कहा जाए तो मध्यप्रदेश में केवल दो ही अतिशयकारी बड़े बाबा हैं एक हैं पद्मासन में विराजमान कुंडलपुर के बड़े बाबा और दूसरे हैं खड्गासन में विराजमान मंडी बामोरा के बड़े बाबा।

मंडी बामोरा में आप भूगर्भ से प्राप्त अनेक चतुर्थकालीन भव्य चमत्कारी मूर्तियों के दर्शन कर सकते हैं, बड़े बाबा भगवान आदिनाथ का कुछ ऐसा प्रभाव है कि भक्तों की हर मनोकामना यहाँ पूरी होती है।

भगवान शीतलनाथ के चार कल्याणक जिस धरा पर हुए हों, ऐसे विदिशा शहर से केवल 65 किलोमीटर दूर स्थित मंडी बामोरा, दिल्ली से मुम्बई रेलवे लाइन का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है।

और जिस तरह यहाँ भूगर्भ से अनेक भव्य चमत्कारी जिन मूर्तियों के मिलने का इतिहास रहा है यह क्षेत्र प्राचीन काल में निश्चित ही जैन धर्म का प्रमुख गढ़ रहा होगा। संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर श्री विद्या सागर जी महाराज के आशीर्वाद से यह स्थान फिर से अपनी प्राचीन काल की भव्यता को दोहराने जा रहा है।

यहाँ परम पूज्य मुनि श्री दुर्लभ सागर जी महाराज, संधान सागर जी महाराज एवं निरंजन सागर जी महाराज के सानिध्य एवं निर्देशन में शिल्प और वैभव की दृष्टि से उत्कृष्ट, अनूठा एवं भव्य कालजयी पाषाण युक्त नागर शैली में एक अद्भुत जिनमंदिर का निर्माण होने जा रहा है, निश्चित ही भविष्य में हज़ारों वर्षों तक यह मंदिर कला एवं स्थापत्य के प्रमुख केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित रहेगा एवं देश-विदेश में विशेष आकर्षण का केंद्र होगा।

परम् पूज्य मुनि श्री दुर्लभ सागर जी महाराज ने बहुत चिंतन मनन एवं आलोड़न करने के पश्चात एक मौलिक विश्लेषण समाज के समक्ष प्रस्तुत किया एवं ये मुनिश्री का अद्भुत मौलिक कौशल ही है कि अब यहाँ 13 फिट के छह खड्गासन और 3 पद्मासन समेत नौ गर्भ ग्रह वास्तु और शिल्प की अनूठी मिसाल होंगे। परम पूज्य मुनि श्री संधान सागर जी महाराज की प्रेरणा से बना कुल अठारह गर्भ गृह वाला यह जिनालय, सम्पूर्ण विश्व मे एकमात्र ऐसा जिनालय होगा जिसमें अष्ट मंगल और अष्ट प्रातिहार्य से युक्त नौ विशाल भव्य जिनबिम्ब एक साथ एक ही परिसर में विराजमान होंगे।

सूक्ष्म सत्ता को विराट सत्ता के रूप प्रस्तुत करने वाली ऐसी अनुपमेय कृति विश्व में सिर्फ एक ही होगी।

यह जिनालय पूरे जैन समाज के सात्विक अभिमान का विषय है इसलिए आपसे प्रणति निवेदन हैं कि आप भी इससे जुड़कर अपने पुण्य कर्मों में वृद्धि करें।